- अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों का ग्राफीय निरूपण है जोकि उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं।
- अनधिमान वक्र को तटस्थता वक्र और उदासीनता वक्र भी कहा जाता है।
- अनधिमान वक्र विश्लेषण क्रमवाचक उपयोगिता पर आधारित है।
- इसमें उपयोगिता को सांख्यिकी रूप में नहीं मापा जाता है।
अनधिमान तालिका
- उपरोक्त चित्र में X-अक्ष पर केले की इकाइयों तथा Y-अक्ष पर संतरों की इकाइयों को दर्शाया गया है।
- तालिका तथा वक्र पर स्थित A,B,C,D तथा E केले और संतरे के विभिन्न संयोगों को दर्शाते हैं।
- यह संयोग संतुष्टि के समान स्थल को प्रदर्शित करते हैं।
- A संयोग भी उतनी ही उपयोगिता देता है जितनी B तथा C या कोई अन्य देते हैं।
- इन सभी संयोगों का ग्राफीय रूप से प्रदर्शित करने पर हमें अनधिमान वक्र प्राप्त होता है।
सीमांत विस्थापन की दर (MRS)
- सीमांत विस्थापन की दर से अभिप्राय उस दर से होता है जिस पर वस्तुओं को एक दूसरे से प्रतिस्थापित किया जाता है ताकि उपभोक्ता की कुल संतुष्टि एक समान रहे।
- MRS =संतरे (X)की त्यागी जाने वाली इकाइयां। केले (Y) की प्राप्त की जाने वाली इकाइयां
- तालिका में संतरे की वह मात्रा दिखाई गई है जो कि उपभोक्ता केले की एक अतिरिक्त इकाई को प्राप्त करने के लिए त्याग करने को तैयार है।
- केले(X) के दूसरी इकाई अर्थात संयोग A से B आने के लिए उपभोक्ता संतरे(Y) की 5 इकाइयों का त्याग करने को तैयार है इस प्रकार MRS = 5Y : 1X होगी।
- इसी प्रकार केले(X) कि तीसरी इकाई का उपभोग अर्थात संयोग C उपभोक्ता एक अतिरिक्त इकाई के लिए संतरे(Y) की चार इकाइयों का त्याग करने को तैयार हैं अतः MRS = 4Y : 1X होगी।
- MRS प्रत्येक एकत्रित इकाई के लिए क्रमशः घटती जाती है।
- घटी हुई सीमांत उपयोगिता के नियम के कारण MRS गिरती है।
- जैसे-जैसे उपभोक्ता केले की मात्रा बढ़ाता जाता है वैसे वैसे केले से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता गिरती जाती है।
- परिणाम स्वरूप उपभोक्ता प्रत्येक केले के लिए कम से कम संतरों की इकाइयों का त्याग करना चाहता है।
अनधिमान वक्र की विशेषताएं
अनधिमान वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर गिरता है
- एक उपभोक्ता एक वस्तु का अधिक उपभोग करता है।
- तब उसे दूसरी वस्तु (केले) का उपभोग पहली वस्तु (संतरे) के उपभोग को कम करते ही कर सकता है।
- ताकि उपभोक्ता की कुल उपयोगिता एक समान रहे।
- इस वजह से अनधिमान वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर गिरता है।
अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर/उत्तल होता है
- घटती हुई सीमांत विस्थापन की दर(MRS) के कारण अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर/उत्तल होता है।
- MRS घटने का अर्थ है X वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के लिए Y वस्तु की त्यागी गई इकाइयां क्रमशः घटती जाती हैं।
- घटती हुई सीमांत उपयोगिता के नियम के कारण MRS लगातार गिरती है।
- MRS अनधिमान वक्र ढाल को दर्शाती है।
ऊंचा अनधिमान वक्र संतुष्टि के उच्च स्तर को दर्शाता है
- ऊंचा अनधिमान वक्र वस्तुओं की बड़ी इकाइयों को दर्शाता है।
- एकादिष्ट अनधिमान मान्यता के आधार पर अधिक इकाइयां अधिक उपयोगिता को दर्शाती है।
- चित्र में IC1 की तुलना में IC2 ऊंचा है।
- IC1 में बिंदु उपभोक्ता वस्तु X की 4 इकाइयां तथा वस्तु Y की 5 इकाइयां प्राप्त करता है।
- जबकि IC2 में बिंदु B पर उपभोक्ता वस्तु X की 6 इकाईयां तथा वस्तु Y की 5 इकाइयां प्राप्त करता है।
- अतः उपभोक्ता बिंदु B पर वस्तु X की 2 अतिरिक्त इकाइयां प्राप्त करता है।
- एकदिष्ट अनधिमान की मान्यता (अधिक उपभोग, संतुष्टि के उच्च स्तर को दर्शाती है) के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि बिंदु A की तुलना में बिंदु B संतुष्टि के उच्च स्तर को दर्शाता है।
- जिसका अर्थ है IC1 की तुलना में IC2 संतुष्टि के उच्च स्तर को दर्शाता है।
अनधिमान वक्र कभी भी एक दूसरे को नहीं काट सकते
- एक अनधिमान वक्र पर स्थित सभी बिंदु संतुष्टि के समान स्तर को दर्शाते हैं।
- यदि दो अनधिमान वक्र एक दूसरे को किसी बिंदु पर काटते हैं।
- तो यह बिंदु दर्शाता है कि दोनों वक्रों की उपयोगिता समान है।
- दो अनधिमान वक्र संतुष्टि के समान स्तर को नहीं दशा सकते।
- अतः वह एक दूसरे को नहीं काट सकते हैं।
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- IC1 पर स्थित बिंदु A और B संतुष्टि के समान स्तर को दर्शाते हैं।
- इसी प्रकार IC2 पर स्थित A और C बिंदु भी संतुष्टि के समान स्तर को दर्शाते हैं।
- क्योंकि A=B तथा A=C है इसलिए B=C होगा।
- परंतु यह संभव नहीं है क्योंकि B और C दो विभिन्न अनधिमान वक्रों पर स्थित हैं और संतुष्टि के विभिन्न स्तर को दर्शाते हैं।
- इस प्रकार दो अनधिमान वक्र एक दूसरे को नहीं काट सकते हैं।
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ReplyDeleteAnshika
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