- मिट्टी मलवा, शैल और जैव सामग्री का मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं।
- मिट्टी के विज्ञान को पेडोलॉजी(Pedology) कहा जाता है
- जनक सामग्री, उच्चावच, वनस्पति, जलवायु तथा अन्य जीव रूप और समय मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं।
- मानवीय क्रियाएं भी अपर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती है।
- मिट्टी कि तीन परतें होती हैं जिन्हें संस्तर कहा जाता है।
- पहली संस्तर मिट्टी का सबसे ऊपरी खंड होता है।
- यह पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक जयाप्रदा तो का खनिज पदार्थ, पोषण तत्वों तथा जल से संयोग होता है।
- दूसरे संस्तर में जैव पदार्थ होते हैं तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय स्पष्ट दिखाई देता है।
- तीसरे संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है।
- यह परत मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में पहली अवस्था होती है।
- ऊपरी दो परते इसी से बनी होती है।
- परसों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है।
मृदा (मिट्टी) के प्रकार
- प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता था उर्वर, जो उपजाऊ थी और ऊसर जो बंजर थी।
- 16 वीं शताब्दी में मिट्टी का वर्गीकरण उनकी सहज विशेषताओं तथा बाह्रा लक्षणों जैसे-भूमि का ढाल, संरचना, रंग और नमी की मात्रा पर आधारित था।
- गठन के आधार पर मिट्टी के मृण्मय, बलुई,पांशु तथा दुमट इत्यादि मुख्य प्रकार थे।
- रंग के आधार पर लाल, पीली, काली आदि थी।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अनेक संस्थाओं द्वारा मिट्टी के वैज्ञानिक सर्वेक्षण किए गए।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय मिट्टी को उनकी प्रकृति तथा उनके गुणों के आधार पर विभाजित किया।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(ICAR) ने भारतीय मिट्टी को 8 भागों में विभाजित किया है।
- जलोढ़ मिट्टी।
- काली मिट्टी
- लाल तथा पीली मिट्टी।
- लैटेराइट मिट्टी।
- शुष्क मिट्टी तथा मरुस्थलीय मिट्टी।
- लवण मिट्टी या क्षारीय मिट्टी।
- पीटमय मिट्टी या जैव मिट्टी।
- वनीय मिट्टी या पर्वतीय मिट्टी।
- यह उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विशाल क्षेत्र में पाई जाती है।
- यह मिट्टी देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% भाग में पाई जाती है।
- जलोढ़ मिट्टी नदियों और सरिताओं के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है।
- जलोढ़ मिट्टी गठन में बलुई दुमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की भी पाई जाती हैं।
- इस मिट्टी में पोटाश की मात्रा अधिक और फास्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है।
- जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैं बांगर और खादर।
- बांगर पुरानी जलोढ़ मिट्टी होती है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है।
- खादर नई जलोढ़ मिट्टी होती है।
- नीम तथा मध्य गंगा के मैदानों और ब्रह्मपुत्र घाटी में यह मिट्टी अधिक दुमटी और मृण्मय हैं।
- पश्चिम से पूरब की ओर इसमें बालू (रेत) की मात्रा कम होती जाती है।
- जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है।
- जलोढ़ मिट्टी पर गहन कृषि की जाती है जिसमें मुख्यरूप से गेहूं, धान एवं आलू हैं।
- इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के उद्गार के कारण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने एवं लावा प्रवाह से होता है।
- काली मिट्टी में लोहा, चूना, मैग्नीशियम तथा अल्मुनियम के तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
- इस मिट्टी में फास्फोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की मात्रा कम होती है।
- यह मिट्टी महाराष्ट्र के कुछ भागों, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में पाई जाती है।
- काली मिट्टी को रेगर तथा शाली भी कहा जाता है।
- काली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी होती है इसलिए इसे ब्लैक कॉटन साइल कहते हैं।
- काली मिट्टी गीले होने पर फूली हुई तथा चिपचिपी हो जाती है।
- इस मिट्टी में अवशोषित जल अधिक दिनों तक बना रहता है।
- काली मिट्टी सूखने पर सिकुड़ जाती है। इसलिए शुष्क ऋतु में इन मिट्टीयों में चौड़ी दरारे पड़ जाती हैं।
- लाल मिट्टी का निर्माण का कायांतरित शैल के टूटने से हुआ है।
- लाल मिट्टी में मौजूद आयरन ऑक्साइड के कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है।
- अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में यह मिट्टी जल के साथ पीली दिखाई देती है।
- पीली और लाल मिट्टी उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों और आंध्र प्रदेश तमिलनाडु केरल के कुछ भागों और मध्य गंगा के मैदानों और दक्षिणी भागों में मिलती हैं।
- महीन कणों वाली लाल और पीली मिट्टी उर्वक होती है।
- जबकि मोटे कणों वाली उच्च भूमियों की मिट्टी उर्वक नहीं होती है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्यूमस पाए जाते हैं।
- इस मिट्टी में मोटे अनाजों जैसे दाल, बाजरा, मूंगफली इत्यादि की खेती की जाती है।
- लैटेराइट मिट्टी उच्च तापमान और अधिक वर्षा के क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- इस मिट्टी में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फास्फोरस और कैल्शियम की मात्रा कम होती है।
- जब लौह-ऑक्साइड, एलमुनियम और पोटाश की मात्रा अधिक होती है।
- इस मिट्टी का निर्माण शैलों अर्थात पत्थरों के टूटने से हुआ है।
- यह मिट्टी कृषि के लिए अधिक उर्वर नहीं होती है।
- फसलों के लिए उपजाऊ बनाने के लिए इस मिट्टी में खाद और उर्वरकों की भारी मात्रा डालनी पड़ती है।
- यह काजू के वृक्ष की कृषि के लिए अधिक उपयोगी होती है।
- भवन निर्माण के लिए लैटेराइट मिट्टी का प्रयोग ईट बनाने में किया जाता है।
- यह मुख्यतः केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- इस मिट्टी में चाय एवं कॉफी फसलों की खेती भी की जाती है।
- इस मिट्टी के कुछ क्षेत्रों की मिट्टी में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि इनके जल को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जाता है।
- इसमें नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा सामान्य होती है।
- शुष्क जलवायु, उच्च तापमान एवं तीव्र गति से वाष्पीकरण के कारण इन मिट्टी में नमी और ह्यूमस कम होते हैं।
- इस मिट्टी की निचली परतो में कंकड़ पाए जाते हैं।
- मिट्टी की तली में कंकड़ों की परत बनने की वजह से जल का रिसाव सीमित हो जाता है।
- इसलिए सिंचाई किए जाने पर इन मिट्टी में पौधों की सतत वृद्धि के लिए नमी उपलब्ध रहती है।
- यह मिट्टी शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान मैं मिलती है।
- यह मिट्टी कम उपजाऊ है क्योंकि इसमें ह्यूमस और जैव पदार्थों कम मात्रा में पाए जाते हैं।
- इस मिट्टी में तिलहन, ज्वार और बाजरा की खेती की जाती है।
लवणीय मिट्टी है क्षारीय मिट्टी
- इस मिट्टी को ऊसर,रेह,कल्लर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- इस मिट्टी में पोटैशियम, सोडियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है।
- मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह तंत्र के कारण इनमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन और चूने की मात्रा कम होती है।
- लवण मिट्टी अधिकतर पश्चिमी गुजरात,पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिमी बंगाल के सुंदर वन क्षेत्रों में पाई जाती है।
- अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि की वजह से उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी भी लवणीय होती जा रही है।
- सिंचाई से लवण ऊपर की ओर बढ़ता है और मिट्टी की सबसे ऊपरी परत में लवर एकत्रित हो जाता है।
- इस प्रकार के क्षेत्रों में विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में मिट्टी की लवणता के समाधान के लिए जिप्सम डालने की सलाह दी जाती है।
- यह मिट्टी भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता युक्त क्षेत्रों में मिलती है। जहां वनस्पतियों की विधि अच्छी है।
- इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं।
- इसलिए इस मिट्टी जैव मिट्टी भी कहा जाता है।
- इन जैव पदार्थ से मिट्टी को पर्याप्त मात्रा में ह्यूमस और जैव तत्व प्रदान होते है।
- इस मिट्टी मे 40 से 50% जैव पदार्थ की मात्रा होती है।
- यह मिट्टी बिहार के उत्तरी भाग,उत्तरांचल के दक्षिणी भाग ,पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में पाई जाती है।
- यह मिट्टी पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में ही मिलती हैं।
- इस मिट्टी का निर्माण पर्वतीय पर्यावरण में होता है।
- इसलिए इसे पर्वतीय मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- घाटियों में ये दुमटी और पांशु होती हैं तथा ऊपरी ढालों पर यह मोटे कणों वाली होती है।
- यह मिट्टी अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती है।
- पर्वतीय मिट्टी में पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती हैं।
- पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा गर्म मसालों की खेती की जाती है।
Panshu mrida ke bare me bataye
ReplyDeleteभारतीय मृदा (Indian soils)- का वर्गीकरण, प्रकार एवं विशेषताएं- indian geography
ReplyDeletegk in Hindi (gernal knowledge questions and answers