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इतिहास - विश्व आर्थिक संकट(1929-1934)


  • 1924से लेकर महामंदी आरंभ होने से पहले तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान एवं विकास का काल था।
  • 1920 के दशक के मध्य से आर्थिक समुत्थान का जो दौर आरंभ हुआ था वह1929 में सामाप्त हो गया।
  •  1929 में यह मुख्य समस्या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से शुरू हुई थी।
  • इस आर्थिक संकट की सुचना 24 अक्टूबर 1929 में वालस्ट्रीट के पुर्ण पतन होने से मिली।
  • 1929 में यह समस्या सबसे पहले शेयर बाजार में दिखी जहाँ उपभोक्ता शेयरो को खरीदने से डरने लगे।
  • सर्वप्रथम इस संकट का प्रभाव बैंको पर पडा। जहाँ से लोगो को मजबूर होकर बैंको से अपनी जमा पूंजी निकालनी पड़ी। जिसके चलते बहुत से बैंक बंद हो गए।
  • फैक्टरियों में निर्मित सामान की अधिकतम व उपभोक्ता की कमी के कारण फैक्टरियों को माल बनाना बंद करना पड़ा।
  • जिसके बेरोजगारी का दौर चल गया।
  • विशेषज्ञों ने जब इस समस्या को महसूस किया तब तक यह सारे विश्व में भयंकर रूप से फैल चुकी थी।
  • अब लोगो शेयर बाजार में निवेश करने से ही हिचकिचाने लगे व अपने शेयर्स को उठाने लगे।
  • 12अक्टूबर 1929 को यह संकट अपने चरम सीमा पर पहुच गया । जिस कारण इस दिन को "ब्लैक थर्सडे" का नाम दिया गया।
  • अमेरिका का यह आर्थिक संकट संक्रमण की तरह पुरे विश्व में फैलने लगा।
  • ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विश्व अर्थव्यवस्था एक दूसरे से ऐसी जुडी हुई थी,उन्हें इस संकट से प्रभावित होना ही था।
  • इस प्रकार का संकट अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्र में फैलने लगा। 
  • तकनीकी विधियों द्वारा उत्पादन को बढ़ावा दिया व बाहृ वास्तुओ को खरीदना बंद कर दिया।
  • इससे विदेशी व्यपार सूखने लगे, कृषि क्षेत्र में बेरोज़गारी बड़ी,फैक्टरियों में मजदूरों की संख्या बढ़ाई गई व वेतनों को कम दिया गया।
  • जिसका परिणामयह हुआ कि उपभोक्ताओ में कमी होने लगी व घरेलू बाजार ठप्प होने लगे।
  • 1923-1929 के वर्षों में औद्योगिक क्षेत्रों में 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई लेकिन मजदूरों के वेतन में 8% की कमी हुई।
  • संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के लोगों के रहने के स्तर में गिरावट होने लगी।
  • इस मंदी के कारण बड़ी मात्रा में लोगों के पास पैसों की कमी होने लगी।
  • 1922 में अमेरिका ने 'फोर्डन मैक क्यूम्बर टैरिफ'के द्वारा बाह्रा वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • इस प्रतिबंध से यूरोपीय देशों के बाजार ठप्प होने लगे और अन्य देशों ने इसी बदले की भावना के कारण अमेरिका के माल पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • उस समय की आर्थिक वृद्धि पूंजी पर आधारित थी।
  • यूरोपीय देशों को पूंजी की आवश्यकता थी क्योंकि उन्हें युद्ध में हुई क्षति को पूरा करना था व उत्पादन को बढ़ावा देना था।
  • इसी समय वसाई किस संधि हुई जिसमें यह तय हुआ कि जर्मनी के ऊपर जो आर्थिक ऋण है वह ब्रिटेन व फ्रांस को देखकर पूरा करना था जो उसने युद्ध के समय लिया था।
  • दूसरे देशों ने अमेरिका से ऋण की आवश्यकता थी।
  • ऋण की पूर्ति करने के लिए ऋण का भुगतान स्वर्णधारित मुद्राओं द्वारा किया गया।
  • 1929 तक विश्व के स्वर्ण भंडार का एक बड़ा भाग अमेरिका के पास चला गया।
  • इस समस्या से निकलने के लिए 1927 में जेनेवा में सम्मेलन हुआ परंतु वह सफल नहीं हो सका।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में 13. 7 मिलियन, जर्मनी में 5.6 मिलीयन, ब्रिटेन में 2.8 मिलीयन तक बेरोजगारी हो गई थी।
  • अमेरिका के बैंकों में कमी होने लगी उनकी संख्या 1929 में जहां 25000 थी वही 1933 में घटकर 15000 रह गई।
  • 1933 तक उद्योगिक क्षेत्र भी आधा हो चुका था।
  • 1933 में लंदन सम्मेलन हुआ जो कि विफल हो गया था।
  • 1932 में ब्रिटेन मे आयात एक्ट बनाया वह पूरे यूरोप में आर्थिक अर्थव्यवस्था कड़ी कर दी गई। ब्रिटेन ने मुफ्त व्यापार नीति में सहमति दिखाई।
  • विश्व अर्थव्यवस्था एक दूसरे से एक कड़ी के सहारे जुड़ी हुई थी।
  • वाल स्ट्रीट के पतन के कारण वह सभी प्रभावित हुई।
  • केवल एशिया को छोड़कर क्योंकि वहां की अर्थव्यवस्था स्टालिन आर्थिक योजना से चल रही थी।
  • फ्रांस के स्वर्ण भंडार के कारण 1934 तक वह इस समस्या से निकलने लगा।
  • जर्मनी और फ्रांस में इस आर्थिक संकट से बचने के लिए 'मुद्रा संकुचनकारी' या अपस्फीतिकारी की नीति अपनाई अर्थात सरकारी खर्चों में कमी की गई।

आर्थिक संकट का अंत

  • 1934 आते-आते आर्थिक संकट दूर होना प्रारंभ हो गया।
  • इतने दिनों तक बहुत से कल कारखाने बंद पड़े थे।
  • उत्पादन नहीं होने के कारण चीजों की कमी खटकने लगी थी।
  • उधर, यूरोप उन्हें युद्ध के काले साए में था।
  • हथियारबंदी की होड़ तेज हो गई थी।
  • संसार के सभी संबंध राष्ट्र, अस्त्र- शस्त्र और युद्ध उपयोगी सामग्री बनाने में लग गए थे।
  • सेनाओं की संख्या में वृद्धि की जा रही थी।
  • कारखानों के पास काम भी कमी नहीं थी।
  • इसलिए बेकारी की समस्या स्वयं ही हल हो गई।
  • मुद्रा-प्रसार की नीतियों का अवलंबन करके, विभिन्न देशों में सिक्कों की कीमत गिरा दी गई थी।
  • इन सब कारणों से वस्तुओं की कीमत बढ़ने लगी और संसार की आर्थिक व्यवस्था संतुलित होने लगी।

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