- 1945 में मित्र शक्तियों संयुक्त राष्ट्र, सोवियत संघ, ब्रिटेन व फ्रांस ने जर्मनी, इटली व जापान की शक्तियों को हराया था।
- उसके उपरांत सोवियत संघ एवं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका दो सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर का सामने आए।
- धीरे धीरे यह दो गुटों में विभाजित हो गए।
- इसमें पश्चिमी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र व पूर्वी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त संघ द्वारा किया गया।
- वैचारिक स्तर पर शीघ्र ही दोनों गुटों में एक 'अघोषित युद्ध' छिड़ गया।
- दोनों गुट विदेश नीति के द्वारा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा तथा समाचार पत्रों के द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने लगे।
- इस अघोषित युद्ध को ही शीत युद्ध के रूप में जाना जाता है ।
- सोवियत संघ व संयुक्त राष्ट्र में किसी सैनिक मतभेद की जगह नहीं थी यह एक वैचारिक युद्ध की स्थिति थी।
शीत युद्ध के कारण
- शीत युद्ध के पैदा होने या उसके ठीक ठीक कारण को लेकर विद्वानों में सर्वसम्मति नहीं है।
- उनमें से कुछ के अनुसार 1917 की बोल्शेविक क्रांति उसका कारण थी।
- दूसरों विद्वानों के अनुसार 1945 के सम्मेलन में विश्व की तीन शक्तियों संयुक्त राष्ट्र, सोवियत संघ व ब्रिटेन ने विश्व की राजनीति के भविष्य के बारे में विचार विमर्श करके शीत युद्ध की शुरुआत की।
- कुछ विद्वानों का विश्वास था शीत युद्ध का कारण द्वितीय विश्वयुद्ध था।
- उनमें से कुछ के अनुसार यह इतिहास के नियम की विशेषता है कि जब जीतने वाली शक्तियां किसी कारण के लिए एक साथ होती है, और उस कारण के खत्म होते ही उसमें मतभेद हो जाते है
बोल्शेविक क्रांति
- रूस में साम्यवादी क्रांति थी, पश्चिमी शक्तियां मध्य यूरोप में साम्यवाद के विकसित होने से अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे।
- जबकि दूसरे विश्वयुद्ध में पश्चिमी शक्तियां व साम्यवादी सोवियत संघ ने नाजी जर्मनी का विरोध किया था।
- लेकिन पश्चिमी शक्तियां स्टालिन व उसके वैचारिक साम्यवाद को नाजीवाद व फासीवाद से ज्यादा खतरनाक थे।
- अत: संयुक्त राष्ट्र व उसके साथी तैयार नहीं थे कि विश्व राजनीति में सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरे।
- जिससे ये संदेह दोनों महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध में परिवर्तित हो गया।
परमाणु बम
- द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दोनों महाशक्तियां संयुक्त राष्ट्र तथा सोवियत संघ ने मिलकर जापान पर आक्रमण करने की योजना बनाई।
- परंतु सोवियत संघ को बताए बिना संयुक्त राष्ट्र ने 1945 में जापान पर परमाणु बम गिरा दिया।
- इस क्रिया से सोवियत संघ को यह संदेह हो गया की संयुक्त राष्ट्र के पास नाभिकीय शक्ति है। और वह द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व राजनीति में अपनी सत्ता चलाएगा।
- इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र में सोवियत संघ से यह रहस्य रखा कि वह द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान से ही नाभिकीय अस्त्र बना रहा है
द्वितीय मोर्चे का प्रश्न
- शीत युद्ध का कारण एक दूसरे के प्रति बढ़ता हुआ संदेह और अविश्वास था।
- शीत युद्ध के समय, हिटलर ने दो क्षेत्रों में लड़ाई जारी कर दी थी।
- 1942 से सोवियत संघ और इंग्लैंड,अमेरिका में वैचारिक वैमनस्यता के चलते मतभेद शुरू हो गया था।
- इसका कारण इंग्लैंड, अमेरिका द्वारा द्वितीय मोर्चे न खोला जाना था।
- जब 1941 में हिटलर ने सोवियत संघ पर पूरे पश्चिमी मोर्चे से अपनी पूरी ताकत के साथ आक्रमण किया उस समय स्टालिन ने वादे के अनुसार इंग्लैंड, अमेरिका से पश्चिम में हिटलर के विरुद्ध द्वितीय मोर्चा खोलने का बार-बार आग्रह किया।
- जिससे सोवियत संघ को इस अचानक हुए भारी आक्रमण से समझने का मौका मिल सके।
- लेकिन अमेरिका और इंग्लैंड सा ग्रह को बार-बार टालते रहे।
- 1944 में सोवियत संघ ने अपनी संपूर्ण शक्ति को एकत्रित कर हिटलर को मॉस्को से पीछे धकेलना शुरु किया।
- तब पश्चिमी खेमे में हड़कंप मच गया कि अब सोवियत संघ हिटलर से अकेले ही निपटने में सक्षम है।
- सोवियत संघ पूरे यूरोप पर कब्जा कर साम्यवादी सरकारे स्थापित कर देगा और पूंजीवाद का अंत ज्यादा दूर नहीं होगा।
- अंतः इंग्लैंड अमेरिका ने 5 जून 1944 को सोवियत संघ के नारमंडी प्रांत में जर्मनी के विरुद्ध अपनी सेनाएं उतारी।
- स्टालिन ने फिर भी इसका स्वागत किया।
- लेकिन अब देर हो चुकी थी स्टालिन का विश्वास इन देशो से उठ चुका था।
जर्मनी और पूर्वी यूरोप
- यूरोप के भविष्य में जर्मनी आयाम को जोड़ रहा था जबकि पहले से ही राजनीति का वातावरण तनावपूर्ण था।
- दोनों ही शक्तियां जर्मनी पर अपना नियंत्रण चाहती थी।
- सोवियत संघ चाहता था पूर्वी यूरोप जो उसकी सीमा के पास था उस पर फरवरी 1948 तक कब्जा करे। स्टालिन इस प्रयास में सफल हुआ।
- सोवियत संघ ने पोलैंड, हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया, अल्बानिया, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया को अपने क्षेत्र में लिया।
- इन सब देश में साम्यवादीदलो द्वारा सरकारी बनाई गई एवं अब समाजवाद एक विश्व व्यवस्था बन गई।
- पूर्वी यूरोप का यह संघ प्रतिद्वंदी कैम्प का कारण बना और उन्होंने क्रोधोत्तेज नीतियों पर समान रूप से कार्यवाही की।
ईरान और टर्की
- युद्ध के समय मित्रों राष्ट्रोंकी सहमति से सोवियत संघ ने उत्तरी ईरान और टर्की पर कब्जा कर लिया था।
- ताकि दक्षिण की ओर से उनका देश सुरक्षित रहे।
- दक्षिण ईरान में आंग्ल -अमेरिकन कब्जा था।
- युद्ध समाप्त होते ही अमेरिकन सुनाएं हटा ली गई।
- परंतु सुरक्षा की दृष्टि से सोवियत संघ ने अपनी सुनाए कुछ समय के बाद हटाई।
- इस क्रिया से पश्चिमी शक्तियों को संदेह हुआ कि सोवियत संघ इन क्षेत्रों पर अपना वैचारिक प्रभाव व साम्यवाद को बढ़ाना चाहता है।
वृद्धि और विकास
- शीत युद्ध में वृद्धि विभिन्न चरणों में हुई थी।
- जब तक यह समाप्त हुआ सोवियत संघ विघटित हो चुका था। जोकि राजनीति का मुख्य खिलाड़ी था।
प्रथम चरण (1947-1950)
- ट्रूमैन का सिद्धांत शुरुआती शीतयुद्ध का आरंभ था जिसने शीतयुद्ध में गतिविधि शुरू की।
- ट्रूमैन का सिद्धांत ''मार्शल योजना'' से भी जाना जाता है।
- ट्रूमैन कि अवरोध की नीति इस बात पर आधारित थी कि वह सोवियत संघ के साम्यवाद के विस्तार को बढ़ने से रुकेगा।
- इस योजना का अर्थ था-यूरोप का पुनर्निर्माण वह बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारना।
- इस तरीके पीछे जो योजना थी वह यूरोपीय देश जो विश्व युद्ध में बर्बाद वह उनकी सहायता करना और उनको आर्थिक सहयोग देना।
- सयुक्त राष्ट्र इस बार से घबराने लगा कि पश्चिमी यूरोप में गरीबी से पीड़ित लोग सोवियत संघ के साम्यवाद के रस्ते पर जा रहे हैं।
- इसी योजना के प्रतिक्रिया यह हुई कि स्टालिन मैं अपनी साथियों को 'कम इन्फोर्स' मैं सहयोग के लिए कहा इसका मतलब था सोवियत संघ पूर्वी यूरोप पर पूरी तरह नियंत्रण करेगा।
- जर्मनी के विभाजन भी दोनों महाशक्ति में विरोधी की प्रवृत्ति को जन्म दिया।
- जर्मनी का बंटवारा इसलिए हुआ था कि दोनों शक्तियां अपने-अपने क्षेत्रों में अपना प्रभाव बड़ा सकें।
- लेकिन अमेरिका की 'मार्शल योजना' तथा सोवियत संघ की 'कोमिकान ' की नीति ने यूरोप को सोवियत संघ तथा अमेरिका के मध्य शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
- 1949 में अमेरिका ने अपने मित्रों राष्ट्रों के सहयोग से 'नाटो' जैसे सैनिक संघ का निर्माण किया।
- इसका उद्देश्य उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए किसी भी बाहरी खतरे से कारगर ढंग से निपटना था।
- संधि में शामिल देश पर आक्रमण किया जाएगा तो संधि के सभी देश मिलकर उस देश पर आक्रमण करेंगे।
- वातावरण तीव्र विरोध की राजनीति का पहला संकेत बर्लिन नाकेबंदी थी।
- अतः शीत युद्ध अपने आयामों के साथ इधर-उधर फैल रहा था और यूरोप में वैचारिक कि स्थितियां आ गयी।
द्वितीय चरण (1950-1953)
- शीतयुद्ध के दूसरे चरण की शुरुआत कोरिया संकट से हुई जिसने यूरोप के बाहरी हिस्से में शीतयुद्ध का स्थान ले लिया था।
- इस युद्ध में उत्तरी कोरिया सोवियत संघ तथा दक्षिणी कोरिया को अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों का समर्थन व सहयोग प्राप्त था।
- जिसके चलते कोई कोरिया युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन दोनों महाशक्तियों में आपसी टकराहट स्थिति कायम रही।
तृतीय चरण (1953-1963)
- 1953 में दोनों देशों के नेतृत्व में परिवर्तन हुआ।
- सोवियत संघ स्टालिन की मृत्यु के बाद कुरशेव शासन सम्भाला।
- इसी समय संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रूमैन का स्थान आईजन-हावर ने ले लिया था।
- इसी समय संयुक्त राष्ट्र नेलोगों को साम्यवादी मत से स्वतंत्र करने के लिए 'टकराहट की नीति' को बड़े बदले की कार्यवाही में बदल लिया था।
- 1953 में सोवियत संघ ने प्रथम आण्विक परीक्षण किया।
- इससे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मन में सोवियत संघ के इरादों के प्रति शक पैदा हो गया।
- संयुक्त राष्ट्र में कंबोडिया, वियतनाम और लाओस में साम्यवादी प्रसार रोकने के उद्देश्य से 8 सितंबर 1954 को 'सीटो (SEATO)' का निर्माण किया।
- सोवियत संघ ने वारसा पैक्ट बनाया। जिसमें सोवियत संघ व उसके साथियों ने इस पैक्ट पर हस्ताक्षर करें और जर्मनी का औपचारिक विभाजन हो गया - पूर्वी व पश्चिमी भाग में।
- सोवियत संघ ने पोलैंड पर नियंत्रण कर लिया।
- 1956 में सोवियत संघ ने हंगरी में हस्तक्षेप किया।
- परंतु हंगरी की स्थिति सोवियत शासन में बहुत बुरी थी।
- सोवियत संघ के हस्तक्षेपसे हंगरी में बहुत लड़ाइयां हुई और शीत युद्ध का अधिक भड़काया।
- सोवियत संघ का हंगरी में हस्तक्षेप और मिस्र पर ब्रिटेन, फ्रांस व इजरायल द्वारा आक्रमण एक साथ किया गया।
- 1956 स्वेज नहर संकट में अमेरिका के राष्ट्रपति आईजन-हावर ने मिस्र के मामले में अपने साथियों का साथ देने से इंकार कर दिया।
- फिर सोवियत संघ ने मिस्र का साथ दिया।
- वही हंगरी से सोवियत संघ का ध्यान विचलित हो गया लेकिन शीतयुद्ध राजनीति के मध्य में स्वेज नहर संकट ने जगा ले ली।
- 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट शीतयुद्ध में सबसे खतरनाक था।
- जिसमें पहली बार महाशक्तियां आमने सामने लड़ाई के लिए तैयार थी।
- लेकिन संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति केनेडी वह सोवियत संघ के राष्ट्रपति कुरशेव ने इस संकट के आने से पहले ही आपस में सहमति कर ली।
- अंत में कुरशेव ने निश्चित किया कि वह क्यूबा से अपने निशा लड्डू को हटा लेगा लेकिन इसके बदले में अमेरिका क्यूबा बाहर आक्रमण नहीं करेगा।
चौथा चरण (1962-69)
- 1962 में 'सह अस्तित्व' व 'प्रतियोगिता'का समय था।
- यदि परमाणु हथियार में वृद्धि जारी थी और कुछ नए राष्ट्र परमाणु हथियारों की दिशा में आ रहे थे-ब्रिटेन, फ्रांस व चीन।
- परमाणु हथियार मानवता व शांति के लिए खतरा बन चुके थे।
- 1963 में पाॅर्शल टेस्ट बैन ट्रीटी (PTBT) आई जिसमें वातावरण में परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- उसी प्रकार उनकी विधि के कारण 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) आई।
- इस संधि के अंतर्गत परमाणु हत्यारों को बढ़ाने से रोकना व जिनके पास परमाणु हथियार वह कभी उनका निर्माण नहीं करेंगे।
पाचवां चरण(1969-1978)
- इस चरण को ' दितान्त' के रुप में जाना जाता है जिसका अर्थ है 'तनाव की समाप्ति'।
- संयुक्त राष्ट्र व सोवियत संघ ने नस सह अस्तित्व कि शुरुआत की।
- विचारों की श्रंखला के दूसरे तरह एक नई दरार की शुरुआत हुई।
- दो वैचारिक मित्रों व साथी के बीच-सोवियत संघ व चीन जो 'सीनो सोवियत' मतभेदों से जानी जाती है।
- दितान्त का समय सोवियत संघ व संयुक्त राष्ट्र और चीन व सयुक्त राष्ट्र की मित्रता की नई शुरुआत में याद किया जाता है।
- 1969 तक चीन व सोवियत संघ में छोटी सी सीमा को लेकर लड़ाई हुई।
- ये युद्ध शीत युद्ध की राजनीति में वैचारिक मतभेदों के अनुकूल था।
- अमेरिका के राष्ट्रपति व उनके सलाहकार हेनरी किसिंगर ने दितान्त को संयुक्त राष्ट्र व सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका व चीन के फिर से शुरुआत का यंत्र माना था।
- जबकि यह सोवियत संघ तथा अमेरिका ने नए शुरुआत का काल था परंतु राजनीतिक मतभेदों की समाप्ति अभी नहीं हुई थी।
- दोनों शक्तियों ने आपस में मित्रवत् व संरक्षक की नीति अपनाई।
छठवां चरण (1979-1987)-नई शीतयुद्ध
- नये शीत युद्ध की शुरुआत 1979 में सोवियत के अधिग्रहण अफगानिस्तान से हुई। यह काल दितान्त के युग का अंत था।
- इस नए शीतयुद्ध के काल में बड़े-बड़े शास्त्रों की दौड़ लगी थी जो अंतरिक्ष तक पहुंच गए जिसे अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन ने 'स्टारवार' का नाम दिया।
- संयुक्त राष्ट्र के नये राष्ट्रपति रीगन ने नाभिकीय हथियारों को कार्यवाही से हटा गया और जेरेण्डा(1983) व लीबिया (1986) में हंसता से किया।
- रीगन ने निकारागुआ में विद्रोही का साथ दिया और लैटिन अमेरिका में नई वार्ता का कारण बना।
- 1983 में सोवियत संघ ने कोरिया के नागरिक उड़ान पर आक्रमण करा।
- लेकिन इतिहास में एक मोड़ आया मिसाइल गोर्बाशेव रशिया में 1985 में राष्ट्रपति बने।
- उसके अनुसार वह विदेश नीतियों के सहारे संयुक्त राष्ट्र व पश्चिमी शक्तियों से अपने रिश्तो को सुधारने की थी।
- उनकी नई नीतियां 'खुलापन' व पुनर्निर्माण कुछ बदलाव किया जो पश्चिम का दितान्त था।
शीतयुद्ध की समाप्ति
- गोर्बाच्योव व उसकी नीतियों का रुस में शुभागमन हुआ उसकी इच्छा थी कि पश्चिमी देशों से वह शांति वार्ता करें।
- शीत युद्ध के दिनों की अंतरराष्ट्रीय राजनीति को शिखर वार्ता में बदले।
- 1987 में गोर्बाच्योव ने INF संधि पर हस्ताक्षर करें जिसमे परमाणु मिसाइल के अलावा क्रूस व पार्शिग -2 पर प्रतिबंध था।
- अमेरिका के राष्ट्रपति व सोवियत संघ के राष्टपति ने START संधि पर हस्ताक्षर किए जिसमें परमाणु हथियारों को कम करना था।
- लेकिन इस नए दितान्त काल में संकटों की समाप्ति नहीं हुई, सोवियत संघ 1991 में विघटित हो गया।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का बड़ा अध्याय समाप्त हो गया।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव
विश्व का दो गुटों में विभाजन
- विश्व राजनीति का स्वरूप दो तरफा हो गया था
- एक तरफ सोवियत गुट तथा दूसरी तरफ अमेरिकन गुट में विभाजन हो गया ।
- विश्व की प्रत्येक समस्याओं को अब गुटों के आधार पर आंका जाने लगा।
आतंक और अविश्वास में वृद्धि
- अमेरिका और सोवियत संघ के मतभेदों के कारण अंतर्राष्ट्रीय तनाव, प्रतिस्पर्धा और अविश्वास की स्थिति आ गई थी।
- सभी को भय था कि छोटी सी गलती तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकती है।
- शीतयुद्ध कभी भी वास्तविक युद्ध में बदल सकता है।
सैनिक संगठनों तथा सैनिक संधियों का बहुल्य
- नाटो, सीटों, सेण्टो तथा वारसा पैक्ट जैसी सैनिक संगठनों की शुरुआत शीत युद्ध का ही परिणाम थी।
- जिससे निशस्त्रीकरण की समस्या और जटिल हो गई।
- इससे निरंतर तनाव की स्थिति बनी रही।
आण्विक युद्ध की संभावना का भय
- शीत युद्ध के समय ऐसा लगा कि अगल युद्ध परमाणु युद्ध होगा।
- क्यूबा संकट ने इस भय को और बढ़ा दिया था।
- इस संभावना ने विश्व में आण्विक शस्त्रों की होड़ को बढ़ावा दिया।
शस्त्रीकरण में वृद्धि
- शीतयुद्ध में शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला।
- जिसके कारण विश्व शांति और नि: शस्त्रीकरण के योजनाओं के लिए प्रश्न चिन्ह था।
- दोनों महाशक्तियां अपनी-अपनी सैनिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाने लगी थी।
- जिससे वहां का आर्थिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हो गया।
- अमेरिकी राष्ट्रपति कैनरी ने भी यही कहा था कि शीतयुद्ध से शस्त्रीकरण में वृद्धि हुई है जिसके चलते दुनिया भर का पैसा खर्च सिर्फ हथियारों के लिए हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका में कमी
- शीत युद्ध के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में भी अवरुद्ध होने लगे थे।
- विश्व संगठन महाशक्ति की विचारधारा अलग-अलग होने की वजह से कोई कठोर कार्यवाही नहीं कर सकी थी।
- अब अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों मां शक्तियों के निर्णय पर ही निर्भर हो गया था।
- संयुक्त राष्ट्र संघ शक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया था।
सुरक्षा परिषद का पंगु होना
- सुरक्षा परिषद के ऊपर विश्व शांति और सुरक्षा स्थापित करने का कार्य था।
- लेकिन महाशक्तियों ने इसको अपने संघर्ष का अखाड़ा बना दिया था।
- दोनों के परस्पर विरोधी होने के कारण विभिन्न विषयों पर वीटो के द्वारा बहस होती थी।
Good
ReplyDelete