Skip to main content

मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज़ ऑफ डेथ (MCCD) 2020 रिपोर्ट

 


चर्चा में क्यों?
 

मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज़ ऑफ डेथ (MCCD) 2020 रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 लॉकडाउन के पहले वर्ष में पिछले एक दशक के दौरान साँस की बीमारियों से मरने वाले व्यक्तियों की सबसे अधिक घटनाएँ देखी गईं। 

MCCD रिपोर्ट: 

  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम, 1969 के प्रावधानों के तहत देश में मृत्यु के कारणों की चिकित्सा प्रमाणन (MCCD) योजना शुरू की गई थी। 
  • तब से यह देश में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में दक्षता के विभिन्न स्तरों के साथ प्रारंभ है। 
  • इस योजना के तहत भारत के महापंजीयक का कार्यालय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के संबंधित मुख्य रजिस्ट्रारों के जन्म और मृत्यु पंजीकरण कार्यालयों द्वारा एकत्रित, संकलित एवं सारणीबद्ध रूप में मृत्यु के चिकित्सकीय प्रमाणित कारणों पर डेटा प्राप्त करता है। 

MCCD रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ: 

  • कुल मौतें: वर्ष 2020 में सभी कारणों से होने वाली मौतों की कुल संख्या 81.2 लाख थी। 
    • रिपोर्ट में 2020 और 2021 के लिये भारत की अतिरिक्त मृत्यु दर 47.4 लाख आँकी गई है। 
    • नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) के आंँकड़ों ने 2019 की तुलना में 2020 में सभी कारणों से 4.75 लाख अतिरिक्त मौतों की जानकारी दी। 
  • चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मौतें: चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्यु के मामले में यह राष्ट्रीय स्तर पर कुल पंजीकृत मौतों का 22.5% है, लेकिन लाइलाज़ बीमारी के समय मृतकों की यह संख्या बढ़कर 54.6% हो गई।राष्ट्रीय स्तर पर कुल पंजीकृत मौतों का 22.5% चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मौतें हैं, लेकिन टर्मिनल बीमारी के समय यह बढ़कर 54.6% हो गई। 
    • चिकित्सकीय रूप से कुल प्रमाणित मौतों का लगभग 5.7% शिशुओं की मौतों के रूप में रिपोर्ट की गई है। 
  • मौतों के प्रमुख समूहिक कारण: मौतों के नौ प्रमुख समूहिक कारण है जो चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मौतों के कुल कारणों का लगभग 88.7% हैं: 
    • संचारी रोग (32.1%) 
    • श्वसन तंत्र संबंधी रोग (10%) {"201341983":0,"335551550":6,"335551620":6,"335559739":160,"335559740":259}" style="box-sizing: border-box;"> 
    • विशेष प्रयोजन के लिये कोड- कोविड-19 (8.9%) 
    • कुछ संक्रामक और परजीवी रोग- मुख्य रूप से सेप्टीसीमिया तथा तपेदिक से युक्त (7.1%) 
    • अंतःस्रावी, पोषण और चयापचय संबंधी रोग (5.8%) 
    • चोट, ज़हर और बाहरी कारणों के कुछ अन्य परिणाम (5.6%)  
    • नियोप्लाज़्म (4.7%) 
    • प्रसवकालीन अवधि में उत्पन्न होने वाली कुछ स्थितियाँ (4.1%) 
    • लक्षण और असामान्य नैदानिक परिणाम "अन्यत्र वर्गीकृत नहीं" (10.6%) 

कोविड-19 से हुई मौतें:  

  • कोविड-19 वायरस, एक साँस संबंधी बीमारी का कारक भी है जिसे अलग से रिपोर्ट में "विशेष उद्देश्यों के लिये कोड (कोविड-19 मौत) के तहत रिपोर्ट की गई मौतों" के रूप में दर्ज किया गया है। 
  • कोविड-19 मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, जिसके राष्ट्रीय स्तर पर कुल चिकित्सकीय मौतों में से 8.9% मामले दर्ज किये गए है  
  • हालाँकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2020 में 1.49 लाख लोगों की मृत्यु कोविड-19 के कारण हुई थी। 
  • मई 2022 तक भारत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 5.2 लाख थी। 

साँस की बीमारी से होने वाली मौतें:

Short-of-breath  MCCD 

  • वर्ष 2020 में निमोनिया, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी साँस की बीमारियों के कारण 1,81,160 मौतें हुईं, वहीँ वर्ष 2019 में 1,52,311 से अधिक मौतें हुईं थीं। 
  • 70 वर्ष से ऊपर के लोग श्वसन रोगों से सबसे अधिक प्रभावित थे, जो सबसे ज़्यादा मौतों के लिये ज़िम्मेदार थे, कुल पंजीकृत चिकित्सकीय प्रमाणित मौतों का 29.4% लोग इस आयु वर्ग से संबंधित थे। 
    • इसके बाद 55-64 वर्ष के आयु वर्ग में 23.9% मौतें दर्ज हुईं, जबकि 65-69 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में भी मौतों की एक बड़ी संख्या (4.5%) दर्ज की गई है। 
  • मौतों की सबसे ज़्यादा संख्या 45 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग मेंं देखी गई जो कुल मौतों का 82.7% है। 

स्रोत: द हिंदू 

Comments

Popular posts from this blog

अर्थशास्त्र- उत्पादन संभावना वक्र (PPC CURVE)

उत्पादन संभावना वक्र के अन्य नाम। उत्पादन संभावना सीमा। उत्पादन संभावना फ्रंटियर। रुपांतरण वक्र। रुपांतरण सीमा। उत्पादन संभावना वक्र(PPC) - यह वक्र दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाता है जिने  दिए गए संसाधनों व तकनीक द्वारा उत्पादित किया जा सकता है। PPC की मान्यताएं (Assumption for PPC) संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम  प्रयोग किया जाता है। दिए गए संसाधनों के प्रयोग से केवल दो वस्तुओं को उत्पादित किया जा सकता है। संसाधन सभी वस्तुओं के उत्पादन में एक समान नहीं होते हैं। तकनीक के स्तर को स्थिर मान लिया जाता है। उत्पादन संभावना तालिका व वक्र उत्पादन संभावना वक्र उपरोक्त वक्र मे X- अक्ष पर वस्तु X की इकाइयों को और Y-अक्ष पर वस्तु Y की इकाइयों को दर्शाया गया है। बिन्दु A पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग करके वस्तु Y की अधिकतम 15 इकाइयां उत्पादित कर सकती है परंतु वस्तु X की एक भी इकाइयां उत्पादित नहीं कर सकती है। वही बिंदु F पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग वस्तु X के उत्पादन के लिए करती है तो वह वस्तु X की अधिकतम 5 इकाइयां उत्पादित कर सक

अर्थशास्त्र- अनधिमान वक्र (Indifference Curve)

अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों का ग्राफीय निरूपण है जोकि उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं। अनधिमान वक्र को तटस्थता वक्र और उदासीनता वक्र भी कहा जाता है। अनधिमान वक्र विश्लेषण क्रमवाचक उपयोगिता पर आधारित है। इसमें उपयोगिता को सांख्यिकी रूप में नहीं मापा जाता है। अनधिमान तालिका  केले और संतरे के संयोग केले  (इकाईयां)  संतरों (इकाईयां)  A  1  25  B 2 20   C  3  16 D  4   13  E  5  11 उपरोक्त चित्र में X-अक्ष पर केले की इकाइयों तथा Y-अक्ष पर संतरों की इकाइयों को दर्शाया गया है।  तालिका तथा वक्र पर स्थित A,B,C,D तथा E केले और संतरे के विभिन्न संयोगों को दर्शाते हैं। यह संयोग संतुष्टि के समान स्थल को प्रदर्शित करते हैं। A संयोग भी उतनी ही उपयोगिता देता है जितनी B तथा C या कोई अन्य देते हैं। इन सभी संयोगों का ग्राफीय रूप से प्रदर्शित करने पर हमें अनधिमान वक्र प्राप्त होता है। सीमांत विस्थापन की दर (MRS) सीमांत विस्थापन की दर से अभिप्राय उस दर से होता है जिस पर वस्तुओं को एक दूसरे से प्रतिस्थापित किया जाता है ताकि उपभोक्ता की कुल संतुष्टि एक समान रहे। MRS = संतरे

अर्थशास्त्र - अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं

उत्पादन, उपभोग और वितरण क्रियाए प्रत्येक अर्थव्यवस्था का मुख्य गतिविधियाँ हैं| इन गतिविधियों के दौरान प्रत्येक अर्थवयवस्था के सामने  आर्थिक समस्या उत्पन्न होती हैं| आर्थिक समस्या वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित संसाधनों के जरिये असीमित आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाने वाली चयन की समस्या हैं| इस आर्थिक समस्या के कारण प्रत्येक अर्थव्यवस्था को मुख्य केंद्रीय समस्याओ का सामना करना पड़ता है| क्या उत्पादन किया जाये ? यह समस्या उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं सेवाओं के चयन और प्रत्येक चयनित वस्तुए उत्पादित की जाने वाली मात्रा से हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था के पास सीमित संसाधन होते हैं तथा इन संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं। इसी वजह से प्रत्येक अर्थव्यवस्था सभी वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादित नहीं कर सकती है। एक वस्तु या सेवा का अधिकउत्पादन दूसरी वस्तु या सेवा के उत्पादन को कम करके ही संभव हो सकता है। क्या उत्पादन किया जाए समस्या के दो पहलू हैं। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए। एक अर्थव्यवस्था को निर्णय लेना पड़ता है कि किन उपभोक्ता वस्तुओं (चावल, गेहूं, कपड़े

इतिहास - पेरिस शांति समझौता(1919-1920)

प्रथम विश्वयुद्ध का समापन करने वाली प्रधान शांति शर्तों का खाका 1919 में पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन में खींचा गया था। कई देशों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्शो में भाग लिया और उनके हितों से प्रत्यक्षतया जुड़े हुए मामलों में उनकी राय ली गई थी। शांति की शर्तों के मानदण्ड बड़ी संख्या में तथाकथित 4 के संघ वाली बड़ी शक्तियों द्वारा तय किये गए थे। जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज, फ्रांस के प्रधानमंत्री जॉर्ज क्इलमांसू, और इटली के प्रधानमंत्री विट्टोरियो आॅरलैंडो शामिल थे। पराजित शक्तियों ने समझौतों में भाग नहीं लिया और उन्हें उस ढाॅचे शर्तें स्वीकार करनी थी जिसमें उन्होंने भागी ही नहीं लिया था। सोवियत रूस धुरी शक्तियों के साथ ब्रेस्ट-लितोव्स्क किशन की कर मार्च 1918 में युद्ध से हट गया था, का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं था। शांति संधियां 1919 से 1923 के बीच हुई है विभिन्न संधियों ने अंतिम समझौते का गठन किया। वर्साय की संधि ने जर्मनी के साथ, सेंट जर्मैन की संधि ने ऑस्ट्रेलिया के साथ, नेउइली की संधि ने बल्गेरियाई के साथ, ट्राय

अर्थशास्त्र- अनधिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता का संतुलन

उपभोक्ता का संतुलन - उपभोक्ता के संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जिस पर उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और दी गई कीमतों और उसकी दी गई आय पर वह इसमें कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता है। बजट रेखा और अनधिमान मानचित्र के विश्लेषण से उपभोक्ता के संतुलन के बिंदु को प्राप्त किया जाता है। अनधिमान वक्र के विश्लेषण के रूप में उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में तब होगा जब संतुलन की दोनों शर्ते पूरी होती हैं। उपभोक्ता के संतुलन की शर्तें बजट रेखा तथा अनधिमान वक्र एक दूसरे को स्पर्श करनी चाहिए। अर्थात बजट रेखा का ढाल तथा अनधिमान वक्र का ढाल दोनों बराबर होने चाहिए। MRS=Px/Py MRS लगातार गिरती हो। अर्थात अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर हो। उपरोक्त चित्र में IC1, IC2 और IC3 तीन अनधिमान वक्र है और AB बजट रेखा है यह तीनों अनधिमान वक्र संतुष्टि के विभिन्न स्तर को दर्शाते हैं IC3 वक्र संतुष्टि के अधिकतम स्तर को दर्शाता है परंतु बजट रेखा के अवरोध के कारण उपभोक्ता जिस उच्चतम अनधिमान वक्र पर पहुंच सकता है वह IC2 है 'E' बिंदु बजट रेखा और अनधिमान वक्र IC2 का स्पर्श बिंदु

बजट रेखा या कीमत रेखा (Budget Line or Price Line)

बजट रेखा दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों का ग्राफीय निरूपण होता है जिन्हें उपभोक्ता दी गई कीमतों तथा अपनी आय को व्यय करके खरीद सकता है। बजट रेखा को कीमत रेखा भी कहते हैं। बजट रेखा की चित्रमय व्याख्या माना कि एक उपभोक्ता के पास दोनों वस्तुओं केले(X) और संतरे (Y) पर व्यय करने के लिए ₹20 का बजट उपलब्ध है। केले की कीमत ₹4 प्रति इकाई है और संतरे की कीमत ₹2 प्रति इकाई है। उपभोक्ता को केले और संतरे के निम्नलिखित संयोग/बंडल प्राप्त होता है। जो उपभोक्ता अपने दी गई आय और वस्तुओं की दी गई कीमत के द्वारा खरीद सकता है। इन विभिन्न संयोग से ही बजट रेखा बनती है। Add caption उपरोक्त वक्र में X-अक्ष पर केले और Y-अक्ष पर संतरे की गायों को दर्शाया गया है। बिन्दु A पर उपभोक्ता अपने समस्त आय को व्यय करके केले की अधिकतम 5 इकाइयां ही खरीद सकता है। इसके विपरीत बिंदु एफ पर उपभोक्ता अपनी समस्त आय को संतरे पर व्यय करके 10 इकाइयां खरीद सकता है। A और F के बीच B,C,D और E ऐसे ही विभिन्न बिन्दु है। इन सभी बिंदुओं को मिलाने से एक सरल रेखा AF रेखा प्राप्त होती है जिससे बजट रेखा या कीमत रेखा कहते हैं। बजट रेखा पर स्थित स

इतिहास - विश्व आर्थिक संकट(1929-1934)

1924से लेकर महामंदी आरंभ होने से पहले तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान एवं विकास का काल था। 1920 के दशक के मध्य से आर्थिक समुत्थान का जो दौर आरंभ हुआ था वह1929 में सामाप्त हो गया।  1929 में यह मुख्य समस्या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से शुरू हुई थी। इस आर्थिक संकट की सुचना 24 अक्टूबर 1929 में वालस्ट्रीट के पुर्ण पतन होने से मिली। 1929 में यह समस्या सबसे पहले शेयर बाजार में दिखी जहाँ उपभोक्ता शेयरो को खरीदने से डरने लगे। सर्वप्रथम इस संकट का प्रभाव बैंको पर पडा। जहाँ से लोगो को मजबूर होकर बैंको से अपनी जमा पूंजी निकालनी पड़ी। जिसके चलते बहुत से बैंक बंद हो गए। फैक्टरियों में निर्मित सामान की अधिकतम व उपभोक्ता की कमी के कारण फैक्टरियों को माल बनाना बंद करना पड़ा। जिसके बेरोजगारी का दौर चल गया। विशेषज्ञों ने जब इस समस्या को महसूस किया तब तक यह सारे विश्व में भयंकर रूप से फैल चुकी थी। अब लोगो शेयर बाजार में निवेश करने से ही हिचकिचाने लगे व अपने शेयर्स को उठाने लगे। 12अक्टूबर 1929 को यह संकट अपने चरम सीमा पर पहुच गया । जिस कारण इस दिन को "ब्लैक थर्सडे" का नाम दिया

इतिहास- शीत युद्ध( 1947-1987)

1945 में मित्र शक्तियों संयुक्त राष्ट्र, सोवियत संघ, ब्रिटेन व फ्रांस ने जर्मनी, इटली व जापान की शक्तियों को हराया था। उसके उपरांत सोवियत संघ एवं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका दो सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर का सामने आए। धीरे धीरे यह दो गुटों में विभाजित हो गए। इसमें पश्चिमी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र व पूर्वी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त संघ द्वारा किया गया। वैचारिक स्तर पर शीघ्र ही दोनों गुटों में एक 'अघोषित युद्ध' छिड़ गया। दोनों गुट विदेश नीति के द्वारा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा तथा समाचार पत्रों के द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने लगे। इस अघोषित युद्ध को ही शीत युद्ध के रूप में जाना जाता है । सोवियत संघ व संयुक्त राष्ट्र में किसी सैनिक मतभेद की जगह नहीं थी यह एक वैचारिक युद्ध की स्थिति थी। शीत युद्ध के कारण शीत युद्ध के पैदा होने या उसके ठीक ठीक कारण को लेकर विद्वानों में सर्वसम्मति नहीं है। उनमें से कुछ के अनुसार 1917 की बोल्शेविक क्रांति उसका कारण थी। दूसरों विद्वानों के अनुसार 1945 के सम्मेलन में विश्व की तीन शक्

भूगोल- भारत की मृदा (मिट्टी)

मिट्टी मलवा, शैल और जैव सामग्री का मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। मिट्टी के विज्ञान को पेडोलॉजी(Pedology) कहा जाता है  जनक सामग्री, उच्चावच, वनस्पति, जलवायु तथा अन्य जीव रूप और समय मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं। मानवीय क्रियाएं भी अपर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती है। मिट्टी कि तीन परतें होती हैं जिन्हें संस्तर कहा जाता है। पहली संस्तर मिट्टी का सबसे ऊपरी खंड होता है। यह पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक जयाप्रदा तो का खनिज पदार्थ, पोषण तत्वों तथा जल से संयोग होता है। दूसरे संस्तर में जैव पदार्थ होते हैं तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय स्पष्ट दिखाई देता है। तीसरे संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है। यह परत मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में पहली अवस्था होती है। ऊपरी दो परते इसी से बनी होती है। परसों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। मृदा (मिट्टी) के प्रकार प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता था उर्वर, जो उपजाऊ थी और ऊसर जो बंजर थी। 16 वीं शताब्दी में मिट्टी का वर्गीकरण उनकी सहज विशेषताओ

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है और यह पृथ्वी को सभी औरों से ढके हुए हैं। इसमें मनुष्यों एवं जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक गैसें जैसे-ऑक्सीजन तथा पौधों के जीवन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड मिलते हैं। वायु पृथ्वी के द्रव्यमान का अभिन्न अंग है तथा इसके कुल द्रव्यमान का 99% पृथ्वी की सतह से 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक विद्यमान हैं है। वायु रंगहीन तथा गंधहीन होती है तथा जब यह पवन की भांति बहती है तब हम इसे अनुभव करते हैं। वायुमंडल का संघटन वायुमंडल का निर्माण जलवाष्प, गैसों एवं धूल कणों से होता है। वायुमंडल के ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार परिवर्तित होता है जैसे कि 120 किलोमीटर ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा शुन्य हो जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड एवं जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही मिलते हैं। गैसें वायुमंडल में बहुत से प्रकार की गैसे पाई जाती हैं उनमें से कुछ मुख्यता है। मौसम विज्ञान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड अति महत्वपूर्ण गैस है। क्योंकि यह सौर