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ज़िला अस्पतालों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट : नीति आयोग

  •  नीति आयोग ने 'ज़िला अस्पतालों के प्रदर्शन में सर्वोत्तम अभ्यास' शीर्षक से भारत में ज़िला अस्पतालों की एक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की है।
  • इस रिपोर्ट का आशय जिला अस्पतालों के कामकाज में अपनाई जा रही विधियों से है। 

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के बारे में:
    • सहयोग: यह रिपोर्ट स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भारत का एक सहयोगी प्रयास है।
    • डेटा सत्यापन: भारतीय गुणवत्ता परिषद के एक घटक, नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ने ऑन-ग्राउंड डेटा का सत्यापन किया है।
      • वर्ष 2017-18 की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) के आँकड़ों को इस कार्य के लिये आधार रेखा के रूप में इस्तेमाल किया गया है। 
    • वर्गीकरण: इस प्रदर्शन मूल्यांकन के लिये ज़िला अस्पतालों को छोटे (200 बिस्तरों तक), मध्यम (201-300 बिस्तरों वाले) और बड़े अस्पतालों (300 बिस्तरों से अधिक) में वर्गीकृत किया गया था। 
      • कुल अस्पतालों में से 62 प्रतिशत छोटे अस्पताल थे। 
    • प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPIs): मूल्यांकन में 2017-18 के आँकड़ों के आधार पर 10 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक शामिल किये गए जिसके आधार पर 707 ज़िला अस्पतालों का मूल्यांकन किया गया। 10 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक इस प्रकार है-
      • प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर कार्यात्मक अस्पताल बिस्तरों की संख्या 
      • भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS) मानदंडों की स्थिति में डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ और पैरामेडिकल स्टाफ का अनुपात। 
      • उपलब्ध सहायता सेवाओं का अनुपात। 
      • उपलब्ध मुख्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अनुपात। 
      • उपलब्ध नैदानिक सेवाओं का अनुपात। 
      • बिस्तर अधिभोग दर। 
      • सी-सेक्शन दर। 
      • सर्जिकल उत्पादकता सूचकांक। 
      • प्रति डॉक्टर ओपीडी। 
      • ब्लड बैंक रिप्लेसमेंट रेट।  
  • मुख्य निष्कर्ष:
    • प्रति व्यक्ति बिस्तर की उपलब्धता: औसतन एक ज़िला अस्पताल में 1,00,000 लोगों के लिये 24 बिस्तर उपलब्ध थे।
      • मूल्यांकन के लिये, यह निर्धारित किया गया था कि एक अस्पताल में इतने लोगों के लिये 22 बिस्तर होने चाहिये (IPHS 2012 दिशा-निर्देश)।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रत्येक 1,000 लोगों पर अस्पताल में पाँच बिस्तर/बेड की सिफारिश करता है। 
    • डॉक्टर-टू-बेड अनुपात: कुल 707 ज़िलों में से केवल 27% ने एक अस्पताल में प्रति 100 बेड पर 29 डॉक्टरों के डॉक्टर-टू-बेड अनुपात को पूरा किया।
      • 707 में से 88 अस्पतालों में स्टाफ नर्सों का आपेक्षिक अनुपात था।
    • पैरामेडिकल स्टाफ का अनुपात: केवल 399 अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ (Paramedical Staff) का अनुपात IPHS मानदंडों (500 बिस्तरों वाले अस्पताल के लिये 100 पैरामेडिकल स्टाफ) के अनुरूप पाया गया। 
    • सपोर्ट सर्विसेज़: भारत के प्रत्येक ज़िला अस्पताल में औसतन 11 सपोर्ट सर्विसेज़ विद्यमान हैं, जबकि आवश्यक 14 थीं।
    • नैदानिक परीक्षण सेवाएँ: केवल 21 अस्पतालों ने सभी नैदानिक परीक्षण सेवाएंँ उपलब्ध कराने के मानदंड को पूरा किया।
    • बेड ऑक्यूपेंसी: 707 में से 182 अस्पतालों में 90% या उससे अधिक बेड उपयोग में थे।
      • 80-85% बेड ऑक्यूपेंसी आदर्श मानी जाती है। 
    • ओपीडी के मरीज़: ज़िला अस्पताल में औसतन एक डॉक्टर 27 ओपीडी मरीज़ों को देखता है।
  • सुझाव:
    • संसाधनों को बढ़ाना: ज़िला अस्पतालों को डिजिटलीकरण हेतु पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
      • अस्पतालों में उच्च स्तरीय सेवाओं को उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनका प्रसार करने के लिये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के प्रशिक्षण, कार्यशालाओं आदि का आयोजन किया जा सकता है।
    • मेडिकल कॉलेजों के साथ लिंकिंग: ज़िला अस्पतालों को हब और स्पोक वितरण मॉडल के साथ नियोजित करके निकटतम मेडिकल कॉलेज से जोड़ा जा सकता है, जो कि एक लागत प्रभावी और समय बचाने वाला परिवहन एवं सेवा वितरण तंत्र है।
    • संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना: सहायक सेवाओं, नैदानिक परीक्षण सुविधाओं, फार्मेसी, चिकित्सा और पैरामेडिकल स्टाफ की सुनियोजित शिफ्ट की (24×7) उपलब्धता सुनिश्चित करना अस्पतालों में बिस्तरों के इष्टतम अधिभोग एवं संसाधनों के उपयोग में योगदान को बढ़ावा दे सकता है।
    • टेली-मेडिसिन सेवाएंँ: अस्पतालों के विस्तार द्वारा समुदाय के बीच देखभाल की मांग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, साथ ही देखभाल के तरीकों को सुलभ बनाकर अधिक बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। टेली- मेडिसिन सेवाएंँ मरीज़ों को सुविधा प्रदान करने के साथ ही ओपीडी की संख्या बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। 
    • सहायक नर्स मिडवाइफ (Auxiliary Nurse Midwife- ANM), आशा-आंँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता नेटवर्क का लाभ उठाते हुए होम डिलीवरी द्वारा संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित और सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को नीति निर्माण इसकी संघीय संरचना और जिम्मेदारियों तथा वित्तपोषण के केंद्रीय-राज्य विभाजन द्वारा आकार दिया गया है।
      • राज्य सूची: सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल तथा औषधालय राज्य के विषय हैं, जिसका अर्थ है कि उनके प्रबंधन एवं सेवा वितरण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी राज्यों के पास है।
      • संघ सूची: केंद्र, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में भी निवेश करता है।
      • समवर्ती सूची: केंद्र जीवन संबंधी आँकड़े (Vital Statistics), चिकित्सा शिक्षा और औषधि प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कि समवर्ती सूची के विषय हैं, साथ ही ये राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये योजना बनाने, नीति निर्माण व वित्तपोषण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा का डिजिटलीकरण:
    • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM): NDHM एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है। इस डिजिटल मंच को चार प्रमुख पहलों: हेल्थ आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री से साथ लॉन्च किया जाएगा।
    • आरोग्य सेतु एप: इसका उद्देश्य ब्लूटूथ पर आधारित किसी से संपर्क साधने, संभावित हॉटस्पॉट का पता लगाने और कोविड-19 के बारे में प्रासंगिक जानकारी का प्रसार करना है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017:
    • नीति का उद्देश्य किसी को भी वित्तीय कठिनाई का सामना किये बिना अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना प्रस्तावित करती है।
    • यह आयुष प्रणालियों के त्रि-आयामी एकीकरण की भी परिकल्पना करती है जिसमें औषधि प्रणालियों में क्रॉस रेफरल, सह-स्थान और एकीकृत प्रथाओं को शामिल किया गया है।

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स्रोत: पीआईबी

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