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Showing posts from September, 2019

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है और यह पृथ्वी को सभी औरों से ढके हुए हैं। इसमें मनुष्यों एवं जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक गैसें जैसे-ऑक्सीजन तथा पौधों के जीवन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड मिलते हैं। वायु पृथ्वी के द्रव्यमान का अभिन्न अंग है तथा इसके कुल द्रव्यमान का 99% पृथ्वी की सतह से 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक विद्यमान हैं है। वायु रंगहीन तथा गंधहीन होती है तथा जब यह पवन की भांति बहती है तब हम इसे अनुभव करते हैं। वायुमंडल का संघटन वायुमंडल का निर्माण जलवाष्प, गैसों एवं धूल कणों से होता है। वायुमंडल के ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार परिवर्तित होता है जैसे कि 120 किलोमीटर ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा शुन्य हो जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड एवं जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही मिलते हैं। गैसें वायुमंडल में बहुत से प्रकार की गैसे पाई जाती हैं उनमें से कुछ मुख्यता है। मौसम विज्ञान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड अति महत्वपूर्ण गैस है। क्योंकि यह सौर

अर्थशास्त्र- उत्पादन संभावना वक्र (PPC CURVE)

उत्पादन संभावना वक्र के अन्य नाम। उत्पादन संभावना सीमा। उत्पादन संभावना फ्रंटियर। रुपांतरण वक्र। रुपांतरण सीमा। उत्पादन संभावना वक्र(PPC) - यह वक्र दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाता है जिने  दिए गए संसाधनों व तकनीक द्वारा उत्पादित किया जा सकता है। PPC की मान्यताएं (Assumption for PPC) संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम  प्रयोग किया जाता है। दिए गए संसाधनों के प्रयोग से केवल दो वस्तुओं को उत्पादित किया जा सकता है। संसाधन सभी वस्तुओं के उत्पादन में एक समान नहीं होते हैं। तकनीक के स्तर को स्थिर मान लिया जाता है। उत्पादन संभावना तालिका व वक्र उत्पादन संभावना वक्र उपरोक्त वक्र मे X- अक्ष पर वस्तु X की इकाइयों को और Y-अक्ष पर वस्तु Y की इकाइयों को दर्शाया गया है। बिन्दु A पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग करके वस्तु Y की अधिकतम 15 इकाइयां उत्पादित कर सकती है परंतु वस्तु X की एक भी इकाइयां उत्पादित नहीं कर सकती है। वही बिंदु F पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग वस्तु X के उत्पादन के लिए करती है तो वह वस्तु X की अधिकतम 5 इकाइयां उत्पादित कर सक

अर्थशास्त्र - अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं

उत्पादन, उपभोग और वितरण क्रियाए प्रत्येक अर्थव्यवस्था का मुख्य गतिविधियाँ हैं| इन गतिविधियों के दौरान प्रत्येक अर्थवयवस्था के सामने  आर्थिक समस्या उत्पन्न होती हैं| आर्थिक समस्या वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित संसाधनों के जरिये असीमित आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाने वाली चयन की समस्या हैं| इस आर्थिक समस्या के कारण प्रत्येक अर्थव्यवस्था को मुख्य केंद्रीय समस्याओ का सामना करना पड़ता है| क्या उत्पादन किया जाये ? यह समस्या उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं सेवाओं के चयन और प्रत्येक चयनित वस्तुए उत्पादित की जाने वाली मात्रा से हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था के पास सीमित संसाधन होते हैं तथा इन संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं। इसी वजह से प्रत्येक अर्थव्यवस्था सभी वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादित नहीं कर सकती है। एक वस्तु या सेवा का अधिकउत्पादन दूसरी वस्तु या सेवा के उत्पादन को कम करके ही संभव हो सकता है। क्या उत्पादन किया जाए समस्या के दो पहलू हैं। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए। एक अर्थव्यवस्था को निर्णय लेना पड़ता है कि किन उपभोक्ता वस्तुओं (चावल, गेहूं, कपड़े

भूगोल- भारत की मृदा (मिट्टी)

मिट्टी मलवा, शैल और जैव सामग्री का मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। मिट्टी के विज्ञान को पेडोलॉजी(Pedology) कहा जाता है  जनक सामग्री, उच्चावच, वनस्पति, जलवायु तथा अन्य जीव रूप और समय मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं। मानवीय क्रियाएं भी अपर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती है। मिट्टी कि तीन परतें होती हैं जिन्हें संस्तर कहा जाता है। पहली संस्तर मिट्टी का सबसे ऊपरी खंड होता है। यह पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक जयाप्रदा तो का खनिज पदार्थ, पोषण तत्वों तथा जल से संयोग होता है। दूसरे संस्तर में जैव पदार्थ होते हैं तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय स्पष्ट दिखाई देता है। तीसरे संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है। यह परत मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में पहली अवस्था होती है। ऊपरी दो परते इसी से बनी होती है। परसों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। मृदा (मिट्टी) के प्रकार प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता था उर्वर, जो उपजाऊ थी और ऊसर जो बंजर थी। 16 वीं शताब्दी में मिट्टी का वर्गीकरण उनकी सहज विशेषताओ