Skip to main content

इतिहास - पेरिस शांति समझौता(1919-1920)


  • प्रथम विश्वयुद्ध का समापन करने वाली प्रधान शांति शर्तों का खाका 1919 में पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन में खींचा गया था।
  • कई देशों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्शो में भाग लिया और उनके हितों से प्रत्यक्षतया जुड़े हुए मामलों में उनकी राय ली गई थी।
  • शांति की शर्तों के मानदण्ड बड़ी संख्या में तथाकथित 4 के संघ वाली बड़ी शक्तियों द्वारा तय किये गए थे।
  • जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज, फ्रांस के प्रधानमंत्री जॉर्ज क्इलमांसू, और इटली के प्रधानमंत्री विट्टोरियो आॅरलैंडो शामिल थे।
  • पराजित शक्तियों ने समझौतों में भाग नहीं लिया और उन्हें उस ढाॅचे शर्तें स्वीकार करनी थी जिसमें उन्होंने भागी ही नहीं लिया था।
  • सोवियत रूस धुरी शक्तियों के साथ ब्रेस्ट-लितोव्स्क किशन की कर मार्च 1918 में युद्ध से हट गया था, का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं था।

शांति संधियां

1919 से 1923 के बीच हुई है विभिन्न संधियों ने अंतिम समझौते का गठन किया। वर्साय की संधि ने जर्मनी के साथ, सेंट जर्मैन की संधि ने ऑस्ट्रेलिया के साथ, नेउइली की संधि ने बल्गेरियाई के साथ, ट्रायनाॅन की संधि ने हंगरी के साथ और सेव्रेस व लुसाने की संधि तुर्की के साथ शांति स्थापित की।

वर्साय की संधि (28 जून 1919)

  • वर्साय किशन द युद्ध के 5 वर्ष बाद 28 जून 1919 को हस्ताक्षरित हुई थी।
  • संधि की शर्तों के दस्तावेजों में 440 अनुच्छेद में कई प्रतिशिष्ट सम्मिलित थे।
  • संधि की शर्ते 7 मई 1919 को घोषित की गई थी जिन्हें स्वीकार करने के अलावा जर्मनी के पास दूसरा कोई चारा नहीं था।
  • उत्तर में उत्तरी श्लेजविग डेनमार्क को और पश्चिम में यूपेन व ‌‌‌‌‌‌मल्माडी बेल्जियम को और अल्सैशे व लौरेन फ्रांस को मिल गए थे।
  • बाल्टिक सागर के साथ वाले पूर्वी प्रशिया की एक छोटी क्षेत्र पट्टी, में मेल,अंततः लिथुआनियाई नियंत्रण के अधीन चली गई थी।
  • पोलिश गलियारा व ऊपरी साइलेशिया का भाग परोसें पोलैंड के हाथ लगा था और डैन्जिग का बड़ा बंदरगाह पोलिश कर समझौते के तहत एक मुक्त शहर बन गया था।
  • सार कोयला क्षेत्र फ्रांसीसियों को सौंप दिए गए थे जबकि खुद सार को राष्ट्र संघ द्वारा चलाया जाना था।
  • राइनलैंड 15 वर्षों के लिए मित्र सैन्य बलों की कब्जे में बनाए रखा गया।
  • जर्मनी ने अपने सभी उपनिवेश खो दिये।
  • जर्मनी के अफ्रीकी उपनिवेश ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम व दक्षिण अफ्रीका के बीच बट गए।
  • सुदूर पूर्व प्रशांत में विषुवत रेखा के उत्तर के उसके उपनिवेश जापान को मिल गए, विषुवत रेखा के दक्षिण के उपनिवेश ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड को चले गए।
  • जर्मनी को मित्र सहयोगी शक्तियों की नागरिक जनसंख्या को हुए सभी जान मान के नुकसानों की भरपाई हेतु सहमत होने के लिए विवश किया गया।
  • ये हर्जाना भुगतान या क्षतिपूर्ति  मूल 14 शर्तो में वर्णित नहीं की गई थी। लेकिन फ्रांस व ब्रिटेन के दवाब पर युद्ध विराम शर्तो में शामिल की जानी थी।
  • जर्मनी को 1600 टन से ऊपर के अपने सभी व्यापारिक जहाज व कई छोटे जहाज भी समर्पित करने थे।
  • फ्रांस बेल्जियम व इटली को 10 वर्षों तक मुफ्त कोयला देना था।
  • जर्मनी की सैन्य ताकत को पंगु बनाने के हर संभव प्रयास किए गए।
  • जर्मन सेना की कुल ताकत एक लाख व्यक्तियों तक सीमित कर दी गई।
  • सेना में जबरन भर्ती, टैंक, बख्तबंद कारें सभी निषिद्ध कर दिए गए ।
  • जर्मनी को सिर्फ 6 युद्धपोत और कुछ छोटे जहाज रखने की अनुमति दी गई लेकिन पनडुब्बी नहीं।
  • जर्मनी को नौ सेना 15000 जवानों, छः युद्धपोत( 10,000 टन से अधिक भार वाहन क्षमता रखने वाले नहीं), छः जंगी जहाज़ों (6,000 टन से अधिक क्षमता वाले नहीं),12 ध्वंसक पोतों (200 टन से अधिक विस्थापन करने वाले नहीं) तक सीमित कर दी गई थी।
  • हथियारों के आयात व निर्यात और जहरीली गैसों के निर्माण व संग्रह पर पाबंदी थी।

वर्साय की संधि पर जर्मनी की प्रतिक्रिया

  • समूचे जर्मनी में रोष था जब संधि की शर्तों को सार्वजनिक किया गया।
  • संधि एक डिक्तात( थोपी गई शांति) के नाम से जानी गई क्योंकि यह उन पर जबरन थोपी जा रही थी।
  • जर्मनी में कई लोग नहीं चाहते थे कि संधि पर हस्ताक्षर हो लेकिन वहां के प्रतिनिधि जानते थे कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि जर्मन दुबारा युद्ध आरंभ करने में असमर्थ थे।
  • जर्मनी को दो विकल्प दिए गए थे ः
  • संधि पर हस्ताक्षर करें या
  • मित्र राष्ट्र का आक्रमण झेलने के लिए तैयार रहें 
उन्होंने संधि पर हस्ताक्षर कर दिए क्योंकि वह युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे उनकी सेना छिन्न-भिन्न हो चुकी थी।

सेंट जर्मैन-एन-लाए की संधि(10 सितंबर 1919)

  • यह संधि मित्र व सहयोगी शक्तियों और ऑस्ट्रिया के बीच हुई थी।
  • इस संधि में 14 खंडवे 381 अनुच्छेद व कई परिशिष्ट शामिल थे।
  • संधि की घोषणा के मुताबिक आॅस्ट्रो- हंगेरियाई साम्राज्य को भंग किया जाना था।
  • नई ऑस्ट्रिया गणराज्य में जिसमें प्राय पूर्वी ऑस्ट्रियाई साम्राज्य का जर्मन बोलने वाला अल्पाइनी भाग शामिल था।
  • हंगरी, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया और स्लोवाकों,क्रोटों व सर्बो कि राज्य की स्वतंत्रता को मान्यता दी।
  • संधि में युद्ध के खर्चों के भुगतान के लिए सहयोगियों को निर्देशित, विशाल धनराशि वाली युद्ध ''क्षतिपूर्तियां'शामिल थी।
  • ऑस्ट्रिया, इटली को ट्रेन्टिनो, दक्षिण टायराॅल, ट्रियेस्टे, इस्ट्रिया व कई डाल्मेशियाई दीपों और रोमानिया को बुकोविना देकर छोटा हो गया था।
  • संधि के एक प्रमुख अनुच्छेद के अनुसार ऑस्ट्रिया राष्ट्रीय संघ परिषद की सहमति के बिना जर्मनी के साथ राजनीति की आर्थिक मिला में शामिल नहीं हो सकता था।
  • ऑस्ट्रियाई सेना 30000 स्वयंसेवकों की सैनिक शक्ति पर सीमित कर दी गई थी।
  • एक महान साम्राज्य को कई छोटे स्वतंत्र राज्यों में तब्दील करने के लिए डैन्यूबियाई नौपरिवहन, रेलवे के स्थानांतरण के दूसरे विवरणों से संबंधित कई प्रावधान किए गए थे।

नेउइली-सुर-सेइन की संधि ( 27 नवंबर 1919)

  • यह संधि बुल्गारिया और मित्र व सहयोगी शक्तियों के बीच हस्ताक्षरित हुई थी।
  • इससे बुल्गारिया तुर्की यूनान और सर्बो क्रोटों व स्लोवेनों के राज्यों के बीच विवादित क्षेत्र पर सीमाएं स्थापित हुई।
  • इस संधि के मुताबिक बुलगारिया को अपनी सेना 20000 व्यक्तियों पर सीमित करनी थी‌।
  • 400 मिलियन डॉलर से भी अधिक की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में चुकानी थी और सर्बो क्रोटों व स्लोवेनों के राज्यों के अस्तित्व को मान्यता देनी थी।
  • बुल्गारिया को पश्चिमी थ्रेस यूनान को, मैसीडोनिया का एक भाग युगोस्लाविया को और डोब्रुजा के कुछ भाग रोमेनिया को सौंपने थे।
  • बुल्गारिया में संधि के परिणाम द्वितीय राष्ट्रीय महाविपत्ति नाम से अधिक विख्यात हैं।

ट्रियानॉन की संधि (4 जून 1920)

  • यह शांति संधि एक ओर हंगरी और दूसरे ओर प्रमुख मित्र वैसे योगी शक्तियों के बीच हस्ताक्षरित हुई थी।
  • इसमें 14 खंड 364 अनुच्छेद, कई परिशिष्ट, एक नयाचार(प्रोटोकॉल) व उद्घोषणा शामिल थे।
  • इसने हंगरी की सीमाएं निर्धारित की और इसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को नियंत्रित किया।
  • हंगरी ने संधि के तहत अपने क्षेत्रों का दो तिहाई से भी अधिक भाग और अपने निवासियों के लगभग दो तिहाई हिस्से खो दिये।
  • इस क्षेत्रीय समायोजन के प्रधान लाभभोगी रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया और सर्बो, क्रोटो व स्लोवेनो के राज्य थे।
  • यह सेंट एयरमैन की अपेक्षा और अधिक कठोर संधि थी।

सेव्रेस की संधि (10 अगस्त 1920)

  • यह संधि तुर्की के सुल्तान और मित्र व सहयोगी शक्तियों के बीच हस्ताक्षरित हुई थी।
  • अरब राज्य हेद्जर मुक्त हो गया था और ब्रिटिश नियंत्रणाधीन रखा गया था।
  • रोमेनिया जिसने अपने स्वतंत्र घोषित कर दी थी एक साई गणराज्य में परिणत कर दिया गया था और एक अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी के अधीन रखा गया था।
  • मैसोपोटामिया, ट्रांस-जॉ्रड और फिलीस्तीन तुर्की से ले लिए गए थे और बाद में शासन अधिकार के साथ ब्रिटिश को दे दिए गए थे।
  • सीरिया जिसे तुर्की से ही छीना गया था, फ्रांसीसी शासन अधिकार के अधीन रखा गया था।
  • फिलीस्तीन के संबंध में यद्यपि एक शर्त थोपी गई थी यह ब्रिटिश के उस वायदे से संबंधित थी कि फिलीस्तीन में " यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय घर" की स्थापना की जाएगी जिससे बालफोर घोषणा कहा जाता था।
  • इस वचनबद्धता ने अंततः इजराइल के यहूदी राज्य की स्थिति को संभव किया।

लुसाने की संधि (24 जुलाई 1923)

  • सेव्रेस की संधि की शर्ते सुल्तान द्वारा स्वीकार की गई लेकिन मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा चलाई जा रही एक समानांतर सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं हुई।
  • वे सेवानिवृत्त होकर अंकारा चले गए और एक प्रतिपक्षी सरकार बनाई व एक विशाल सेना का संगठन भी किया।
  • यूनानियों द्वारा मुस्तफा कमाल को हराने के लगातार प्रयास असफल हुए और यूनानियों की एक बड़ी तादाद मारी गई और बचे-खचे एशिया माइनर से निष्कासित कर दिये गये थे।
  • फ्रांसीसी व इतालवी सैनिक वहां से वापस बुला लिए गए थे।
  • छोटी सी ब्रिटिश सेना अपने पड़ावों पर रह गई थी और इस पर आक्रमण करने के बजाए मुस्तफा कमाल ने संधिवार्ताएं कि जिससे लुसाने की संधि हस्ताक्षरित हुई।
  • संधि ने न केवल तुर्की गणराज्य की स्वतंत्रता के लिए बल्कि तुर्की में जातीय यूनानी अल्पसंख्यक वर्ग की सुरक्षा में खासकर यूनान में जातीय तुर्की मुसलमान अल्पसंख्यक वर्ग की सुरक्षा के लिए भी अवसर प्रदान किए।
  • तुर्की की यूनानी जनसंख्या की एक बड़ी तादाद की अदला-बदली यूनान की तुर्की जनसंख्या के साथ हुई।
  • संधि ने यूनान, बुल्गारिया व तुर्की की सीमाएं परिसीमित कर दी, साइप्रस, इराक व सीरिया पर भी तुर्की दावों को औपचारिक रूप से मान लिया और बाद वाले दोनों राज्यों की सीमाएं सुव्यवस्थित कर दी।
  • संधि ने मृत ऑटोमन साम्राज्य के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में नए तुर्की गणराज्य की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी दिलाई।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

अर्थशास्त्र- उत्पादन संभावना वक्र (PPC CURVE)

उत्पादन संभावना वक्र के अन्य नाम। उत्पादन संभावना सीमा। उत्पादन संभावना फ्रंटियर। रुपांतरण वक्र। रुपांतरण सीमा। उत्पादन संभावना वक्र(PPC) - यह वक्र दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाता है जिने  दिए गए संसाधनों व तकनीक द्वारा उत्पादित किया जा सकता है। PPC की मान्यताएं (Assumption for PPC) संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम  प्रयोग किया जाता है। दिए गए संसाधनों के प्रयोग से केवल दो वस्तुओं को उत्पादित किया जा सकता है। संसाधन सभी वस्तुओं के उत्पादन में एक समान नहीं होते हैं। तकनीक के स्तर को स्थिर मान लिया जाता है। उत्पादन संभावना तालिका व वक्र उत्पादन संभावना वक्र उपरोक्त वक्र मे X- अक्ष पर वस्तु X की इकाइयों को और Y-अक्ष पर वस्तु Y की इकाइयों को दर्शाया गया है। बिन्दु A पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग करके वस्तु Y की अधिकतम 15 इकाइयां उत्पादित कर सकती है परंतु वस्तु X की एक भी इकाइयां उत्पादित नहीं कर सकती है। वही बिंदु F पर अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों का उपयोग वस्तु X के उत्पादन के लिए करती है तो वह वस्तु X की अधिकतम 5 इकाइयां उत्पादित कर सक

अर्थशास्त्र- अनधिमान वक्र (Indifference Curve)

अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों का ग्राफीय निरूपण है जोकि उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं। अनधिमान वक्र को तटस्थता वक्र और उदासीनता वक्र भी कहा जाता है। अनधिमान वक्र विश्लेषण क्रमवाचक उपयोगिता पर आधारित है। इसमें उपयोगिता को सांख्यिकी रूप में नहीं मापा जाता है। अनधिमान तालिका  केले और संतरे के संयोग केले  (इकाईयां)  संतरों (इकाईयां)  A  1  25  B 2 20   C  3  16 D  4   13  E  5  11 उपरोक्त चित्र में X-अक्ष पर केले की इकाइयों तथा Y-अक्ष पर संतरों की इकाइयों को दर्शाया गया है।  तालिका तथा वक्र पर स्थित A,B,C,D तथा E केले और संतरे के विभिन्न संयोगों को दर्शाते हैं। यह संयोग संतुष्टि के समान स्थल को प्रदर्शित करते हैं। A संयोग भी उतनी ही उपयोगिता देता है जितनी B तथा C या कोई अन्य देते हैं। इन सभी संयोगों का ग्राफीय रूप से प्रदर्शित करने पर हमें अनधिमान वक्र प्राप्त होता है। सीमांत विस्थापन की दर (MRS) सीमांत विस्थापन की दर से अभिप्राय उस दर से होता है जिस पर वस्तुओं को एक दूसरे से प्रतिस्थापित किया जाता है ताकि उपभोक्ता की कुल संतुष्टि एक समान रहे। MRS = संतरे

अर्थशास्त्र - अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं

उत्पादन, उपभोग और वितरण क्रियाए प्रत्येक अर्थव्यवस्था का मुख्य गतिविधियाँ हैं| इन गतिविधियों के दौरान प्रत्येक अर्थवयवस्था के सामने  आर्थिक समस्या उत्पन्न होती हैं| आर्थिक समस्या वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित संसाधनों के जरिये असीमित आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाने वाली चयन की समस्या हैं| इस आर्थिक समस्या के कारण प्रत्येक अर्थव्यवस्था को मुख्य केंद्रीय समस्याओ का सामना करना पड़ता है| क्या उत्पादन किया जाये ? यह समस्या उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं सेवाओं के चयन और प्रत्येक चयनित वस्तुए उत्पादित की जाने वाली मात्रा से हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था के पास सीमित संसाधन होते हैं तथा इन संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं। इसी वजह से प्रत्येक अर्थव्यवस्था सभी वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादित नहीं कर सकती है। एक वस्तु या सेवा का अधिकउत्पादन दूसरी वस्तु या सेवा के उत्पादन को कम करके ही संभव हो सकता है। क्या उत्पादन किया जाए समस्या के दो पहलू हैं। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए। एक अर्थव्यवस्था को निर्णय लेना पड़ता है कि किन उपभोक्ता वस्तुओं (चावल, गेहूं, कपड़े

अर्थशास्त्र- अनधिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता का संतुलन

उपभोक्ता का संतुलन - उपभोक्ता के संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जिस पर उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और दी गई कीमतों और उसकी दी गई आय पर वह इसमें कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता है। बजट रेखा और अनधिमान मानचित्र के विश्लेषण से उपभोक्ता के संतुलन के बिंदु को प्राप्त किया जाता है। अनधिमान वक्र के विश्लेषण के रूप में उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में तब होगा जब संतुलन की दोनों शर्ते पूरी होती हैं। उपभोक्ता के संतुलन की शर्तें बजट रेखा तथा अनधिमान वक्र एक दूसरे को स्पर्श करनी चाहिए। अर्थात बजट रेखा का ढाल तथा अनधिमान वक्र का ढाल दोनों बराबर होने चाहिए। MRS=Px/Py MRS लगातार गिरती हो। अर्थात अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर हो। उपरोक्त चित्र में IC1, IC2 और IC3 तीन अनधिमान वक्र है और AB बजट रेखा है यह तीनों अनधिमान वक्र संतुष्टि के विभिन्न स्तर को दर्शाते हैं IC3 वक्र संतुष्टि के अधिकतम स्तर को दर्शाता है परंतु बजट रेखा के अवरोध के कारण उपभोक्ता जिस उच्चतम अनधिमान वक्र पर पहुंच सकता है वह IC2 है 'E' बिंदु बजट रेखा और अनधिमान वक्र IC2 का स्पर्श बिंदु

बजट रेखा या कीमत रेखा (Budget Line or Price Line)

बजट रेखा दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों का ग्राफीय निरूपण होता है जिन्हें उपभोक्ता दी गई कीमतों तथा अपनी आय को व्यय करके खरीद सकता है। बजट रेखा को कीमत रेखा भी कहते हैं। बजट रेखा की चित्रमय व्याख्या माना कि एक उपभोक्ता के पास दोनों वस्तुओं केले(X) और संतरे (Y) पर व्यय करने के लिए ₹20 का बजट उपलब्ध है। केले की कीमत ₹4 प्रति इकाई है और संतरे की कीमत ₹2 प्रति इकाई है। उपभोक्ता को केले और संतरे के निम्नलिखित संयोग/बंडल प्राप्त होता है। जो उपभोक्ता अपने दी गई आय और वस्तुओं की दी गई कीमत के द्वारा खरीद सकता है। इन विभिन्न संयोग से ही बजट रेखा बनती है। Add caption उपरोक्त वक्र में X-अक्ष पर केले और Y-अक्ष पर संतरे की गायों को दर्शाया गया है। बिन्दु A पर उपभोक्ता अपने समस्त आय को व्यय करके केले की अधिकतम 5 इकाइयां ही खरीद सकता है। इसके विपरीत बिंदु एफ पर उपभोक्ता अपनी समस्त आय को संतरे पर व्यय करके 10 इकाइयां खरीद सकता है। A और F के बीच B,C,D और E ऐसे ही विभिन्न बिन्दु है। इन सभी बिंदुओं को मिलाने से एक सरल रेखा AF रेखा प्राप्त होती है जिससे बजट रेखा या कीमत रेखा कहते हैं। बजट रेखा पर स्थित स

इतिहास - विश्व आर्थिक संकट(1929-1934)

1924से लेकर महामंदी आरंभ होने से पहले तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान एवं विकास का काल था। 1920 के दशक के मध्य से आर्थिक समुत्थान का जो दौर आरंभ हुआ था वह1929 में सामाप्त हो गया।  1929 में यह मुख्य समस्या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से शुरू हुई थी। इस आर्थिक संकट की सुचना 24 अक्टूबर 1929 में वालस्ट्रीट के पुर्ण पतन होने से मिली। 1929 में यह समस्या सबसे पहले शेयर बाजार में दिखी जहाँ उपभोक्ता शेयरो को खरीदने से डरने लगे। सर्वप्रथम इस संकट का प्रभाव बैंको पर पडा। जहाँ से लोगो को मजबूर होकर बैंको से अपनी जमा पूंजी निकालनी पड़ी। जिसके चलते बहुत से बैंक बंद हो गए। फैक्टरियों में निर्मित सामान की अधिकतम व उपभोक्ता की कमी के कारण फैक्टरियों को माल बनाना बंद करना पड़ा। जिसके बेरोजगारी का दौर चल गया। विशेषज्ञों ने जब इस समस्या को महसूस किया तब तक यह सारे विश्व में भयंकर रूप से फैल चुकी थी। अब लोगो शेयर बाजार में निवेश करने से ही हिचकिचाने लगे व अपने शेयर्स को उठाने लगे। 12अक्टूबर 1929 को यह संकट अपने चरम सीमा पर पहुच गया । जिस कारण इस दिन को "ब्लैक थर्सडे" का नाम दिया

इतिहास- शीत युद्ध( 1947-1987)

1945 में मित्र शक्तियों संयुक्त राष्ट्र, सोवियत संघ, ब्रिटेन व फ्रांस ने जर्मनी, इटली व जापान की शक्तियों को हराया था। उसके उपरांत सोवियत संघ एवं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका दो सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर का सामने आए। धीरे धीरे यह दो गुटों में विभाजित हो गए। इसमें पश्चिमी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र व पूर्वी क्षेत्र का नेतृत्व संयुक्त संघ द्वारा किया गया। वैचारिक स्तर पर शीघ्र ही दोनों गुटों में एक 'अघोषित युद्ध' छिड़ गया। दोनों गुट विदेश नीति के द्वारा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा तथा समाचार पत्रों के द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने लगे। इस अघोषित युद्ध को ही शीत युद्ध के रूप में जाना जाता है । सोवियत संघ व संयुक्त राष्ट्र में किसी सैनिक मतभेद की जगह नहीं थी यह एक वैचारिक युद्ध की स्थिति थी। शीत युद्ध के कारण शीत युद्ध के पैदा होने या उसके ठीक ठीक कारण को लेकर विद्वानों में सर्वसम्मति नहीं है। उनमें से कुछ के अनुसार 1917 की बोल्शेविक क्रांति उसका कारण थी। दूसरों विद्वानों के अनुसार 1945 के सम्मेलन में विश्व की तीन शक्

भूगोल- भारत की मृदा (मिट्टी)

मिट्टी मलवा, शैल और जैव सामग्री का मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। मिट्टी के विज्ञान को पेडोलॉजी(Pedology) कहा जाता है  जनक सामग्री, उच्चावच, वनस्पति, जलवायु तथा अन्य जीव रूप और समय मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं। मानवीय क्रियाएं भी अपर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती है। मिट्टी कि तीन परतें होती हैं जिन्हें संस्तर कहा जाता है। पहली संस्तर मिट्टी का सबसे ऊपरी खंड होता है। यह पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक जयाप्रदा तो का खनिज पदार्थ, पोषण तत्वों तथा जल से संयोग होता है। दूसरे संस्तर में जैव पदार्थ होते हैं तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय स्पष्ट दिखाई देता है। तीसरे संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है। यह परत मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में पहली अवस्था होती है। ऊपरी दो परते इसी से बनी होती है। परसों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। मृदा (मिट्टी) के प्रकार प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता था उर्वर, जो उपजाऊ थी और ऊसर जो बंजर थी। 16 वीं शताब्दी में मिट्टी का वर्गीकरण उनकी सहज विशेषताओ

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है और यह पृथ्वी को सभी औरों से ढके हुए हैं। इसमें मनुष्यों एवं जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक गैसें जैसे-ऑक्सीजन तथा पौधों के जीवन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड मिलते हैं। वायु पृथ्वी के द्रव्यमान का अभिन्न अंग है तथा इसके कुल द्रव्यमान का 99% पृथ्वी की सतह से 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक विद्यमान हैं है। वायु रंगहीन तथा गंधहीन होती है तथा जब यह पवन की भांति बहती है तब हम इसे अनुभव करते हैं। वायुमंडल का संघटन वायुमंडल का निर्माण जलवाष्प, गैसों एवं धूल कणों से होता है। वायुमंडल के ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार परिवर्तित होता है जैसे कि 120 किलोमीटर ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा शुन्य हो जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड एवं जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही मिलते हैं। गैसें वायुमंडल में बहुत से प्रकार की गैसे पाई जाती हैं उनमें से कुछ मुख्यता है। मौसम विज्ञान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड अति महत्वपूर्ण गैस है। क्योंकि यह सौर